आँखों के दरमियान मैं गुलिस्तां दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मैं आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
खेजड़ी के साखो पर लटके फूलो की कीमत बताता हुँ,
मै साम्भर की झील से देखना कैसे नमक उठाता हुँ|
मै शेखावाटी के रंगो से पनपी चित्रकला दिखाता हुँ,
महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा सुनाता हुँ|
पद्मावती और हाड़ी रानी का जोहर बताता हुँ,
पग गुँघरु बाँध मीरा का मनोहर
दिखाता हुँ|
सोने सी माटी मे पानी का अरमान
बताता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
हिरन की पुतली मे चाँद के दर्शन कराता हुँ,
चंदरबरदाई के
शब्दों की व्याख्या सुनाता हुँ|
मीठी बोली, मीठे पानी मे जोधपुर की सैर करता हुँ,
कोटा, बूंदी, बीकानेर और हाड़ोती की मै मल्हार गाता हुँ|
पुष्कर तीरथ कर के मै चिश्ती को चाद्दर चढ़ाता हुँ,
जयपुर के हवामहल मै, गीत मोहबत के गाता हुँ|
जीते सी इस धरती पर स्वर्ग का मैं वरदान दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ||
कोठिया दिखाता हुँ, राज हवेली दिखाता हुँ,
नज़रे ठहर न जाए कही मै आपको कुम्भलगढ़ दिखाता हुँ|
घूंघट में जीती मर्यादा और गंगानगर का मतलब समझाता हुँ,
तनोट माता के मंदिर से मै विश्व
शांति की बात सुनाता हुँ|
राजिया के दोहो से लेके, जाम्भोजी के उसूल पढ़ाता हुँ,
होठो पे मुस्कान लिए, मुछों पे ताव देते राजपूत की परिभाषा बताता हूँ|
सिक्खो की बस्ती मे, पूजा के बाद अज़ान सुनाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ||
जय जय राजस्थान
राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
राम राम सा!!! राजस्थानी भाषा राजस्थान रे निवासियां री पिछाण है। इण भाषा और भाषा रे साहित्य नै पिछाण दिरावन सारू कई कलाकारां और साहित्यकारां रो मोकळो सहयोग रैयो है। इण रीत नै आगै बडावण म म्हारो औ छोटो सो प्रयास है। इण ब्लॉग माँय आपां ने राजस्थानी कहानियां,कवितावां अर साहित्यकारां रै जीवन रे बारे म जाणकारी मिळती रेवेळी। इण मायं आपरो महतो सहयोग घणो ई लाजमी ह सा।
बुधवार, 30 मार्च 2016
राजस्थान दिवस विशेष
शनिवार, 26 मार्च 2016
आडी
आपरी निजरां सामै पेश हैं आ आडी---
"सिर केसर मुरगौ नहीं,लीलकंठ नहिं मोर।
पूंछ लंबी माकड़ नहीं,चार पांव नहिं ढोर ।।
दिमाग रौ घोड़ों दौड़ावौ अर लिख दिरावौ इण आडी रो पड़ूत्तर।
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पीथल और पाथल रचनाकार श्री कन्हैयालाल सेठिया
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो खून बहावण नै ||
सुख दुख रो साथी चेतकडो, सूती सी हूक जगा जावै ||
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं हिन्वाणी चोटौ नै ||
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिख्स्यूं अकबर नै पाती ||
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच बांच नै फिर बांच्यो ||
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर रो भरम मिटावण नै ||
यो देख हाथ रो कागद है, तू देका फिरसी कियां अकड ||
अब बता मनै किण रजवट नै, रजुॡती खूण रगां में है ||
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में भर आयो पाणी ||
राणा री पाग सदा उंची, राणा री आन अटूटी है ||
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है सूरजडो, बादल री आंटा खोवैलो ||
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक दकाल हुई ||
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां री याद रह्वै ||
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख मिली कद स्याली नै ||
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री दुनिया सुनी ही |