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गुरुवार, 19 मई 2016
सोमवार, 16 मई 2016
ढोला-मारू री गाथा
राजस्थान री चावी लोककथा ढोलामारू
सपनौ तौ आयौ अर परौ गियौ, पण मारवण री आंख्यां में पाछी नींद नीं आई। आंख्यां खोलै तौ बारै अंधारौ-अंधारौ लागै अर मींचै तौ अंतस में घोर अंधारौ। उठै, बैठै अर पाछी सोवै, पण जीवनै जक नीं। गांव रै बारै ताल में कुरजां कुरळायी।
घर में सूती कुरजां रा बच्चा री-सी लांबी गाबड़ वाळी मारवण रौ हिवड़ौ ही वां कुरजां रै लारै कुरळायौ।
सपना में दीख्योड़ौ ढोलौ अणसैंधौ व्हेतां ही मारूणी नै लाग्यौ जाणै भव-भव रौ सैंधौ वींरौ ढोलौ है।
बाळपणा में व्हीयोड़ा ब्याव नै तौ वा सपना री नांई भूलगी ही, पण आज सपनौ आयनै परतख ढोला नै आंख्यां आगै ऊभौ कर दीधौ। वींनै चींतां आयौ वीरौं ही कोई है, पण वा वींनै नीं जाणै, वौ वींनै नीं जाणै। सपनौ कांई आयौ, वींरा तन नै, मन नै झंझेड़नै जगाय दीधौ। कालै सांझ तांई साथण्यां रै लारै दौड़-दौड़‘र दड़ी रमती टाबरी यां चार-पांच घड़ी मंे ही भावना रौ भार उठायां जोध जुवान लुगाई व्हैगी। हिड़दै री वीणा माथै सपना री आंगळयां फिरतां ही सनेह रा सुर बाजण लाग्या। जठीनै झांकै, वठीनै ढोलौ ही ढोलौ दीखै।
ताल में कुरजां यूं ही कुरळाय री ही , मारवण नै लाग्यौ जाणै वांरी जोड़ी बिछड़गी जदी तौ म्हारी नांई कुरळाय री है। नीं तौ वांरी आंख्यां में नींद है, नी म्हारी आंख्यां में ही। यांरी अर म्हारी अेक-सी गत है, पण यांरै तौ पांखड़ा है, मन करतां ही उड़ जावै, म्हारै पांख कठै जो उड़नै मिल आवूं!
मां देख्यौ मारवणी अणमणी रैवै। साथण्यां सागै ढूल्यां खेलणौ आछौ नीं लागै, काम करवा रौ जीव नीं करै। पैलं ज्यूं दौड़ मां रै गळा में बांहां घाल लटकै नीं। हंसणी आंख्यां री कोर में टावस री रेखा साफ-साफ दीखै। मां थोड़ा में ही घणौ समझगी। चिंता व्ही। बेटी मोटी व्हैगी, सासरा सूं कोई समाचार नीं। मौकौ देख राजा पिंगळ नै कह्यौ- “मारवण नै सासरै भेजणै री त्यारी करणी चावै।”
“हां, अतरा वरस व्हेग्या। नरवर सूं कोई समाचार ले’र ही नीं आयौ!”
“वठा सूं नीं आयौ तौ कांई, आपां ही भेजां! ढोला नै बुलावौ भेजौ। डोढ बरस री नै परणाई जद ढोलाजी तीन बरस रा हा, बाई मोटी व्ही, वै ही जुवान व्हीया। या ढील कांई काम री?”
“सांची बात तौ या है, देवड़ी! म्हूं कतरा ही मिनखां नै कागद दे-दे ढोला नै बुलावा भेज्या, जो गियौ वौ पाछौ आयौ ही नीं, म्हारा समाचार ढोलाजी तांई पूगै ही नीं। ढोला रौ ब्याव माळवणी रै साथै व्हीयोड़ौ है, जो माणस पूगळ रा मारग सूं जावै जींनै माळवण मराय दै।” पिंगळ घणा उदास व्हे बोल्या।
देवड़़ी सलाह दीधी-“अबकाळै कोई जाचक नै भेजौ, जो वीरै माथै कोई वैम नीं करै। मांगतौ-खावतौ नरवरगढ़ जाय ढोलाजी नै बातां सूं, गीतां सूं रिझाय अठै राजी कर ले आवै।”
पिंगळ रै सलाह जंचगी। राग रा जाणकार, वातां रा बणावण्या ढाढी नै ढोला कनै जावा रौ हुकम दीधौ। मारवण दासी नै भेज, ढाढी नै ड्योढी पै बुलाय, ढोलाजी कनै कैवा नै सनेसौ समझाण लागी-
“थूं जाय ढोलाजी नै कीजै, थांरी मारवण बळ’र कोयला व्हैगी है, जाय’र वीं री भसमी तौ भेळी करौ। वीं रा पींजर में प्राण कोयनीं। थांरा साम्हा वीं री लौ बळ री है। वीं भला आदमी नै जायनै यूं कीजै, आतमा थारै कनै है, सरीर नै भलां ही दूरौ राख। ढाढी, थनै ढोलौ मिलै तो थूं जरूर कीजै मारूणी री आंख्यां थांरी बाट देखतां, सीपां री नांई खुल री है, थां स्वाती री बूंद ज्यूं आय वरसौ। यौवन चपां रै मोड़ आवा लाग गिया है, आय कलियां तौ चूंटौ। थांरी याद कर-कर मारूणी कणेर री कांबड़ी ज्यूं सूखगी है।
पंथी! ढोलाजी नै यूं कैवणौ मत भूल जाजै के विरह री लाय लाग री है, आय ईं दावानळ नै बुझावौ। थांरी धण कंवळ ज्यूं कुम्हळायगी है, थां सूरज बण उगौ। यौवन क्षीर समंदर व्हेय रियौ है, थां आय रतन क्यूं नीं काढ़ रिया हौ?”
मारवण री आंख्यां में आंसू भर रिया, सांस नीं माय रियौ, पग रा अंगूठा सूं लींगठी काढ़ती, रूंध्या गळा सूं ढाढी नै समझावा लागी-
“ढोलाजी नै म्हारा नाम सूं हाथ जोड़ कीजै- आप म्हांनै भूलग्या, कोई सनेसौ तक नीं भेज्यौ! बतावौ, जीवूं तौ कीं रा आधार पै जीवूं? जो थां फागण में नीं आया तौ होळी री झाळ में कूद पडू़ंला।”
मारू राग में दूहा बणाय ढाढी नै दीधा- “यै ढोलाजी रै मूंडागै गाय सुणाजै!”
ढाढी मुजरौ कर सीख लीधी-“जीवतौ रियौ तौ ढोलाजी नै ले’र आवूंला, मर गियौ तौ वीं देस में रैय जावूंला।”
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