मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

राजस्थानी भासा

BestSellers
इणरौ इतिहास अनूठो है, इण मांय मुलक री आसा है ।
चहूंकूंटां चावी नै ठावी, आ राजस्थानी भासा है ।

जद ही भारत में सताजोग, आफ़त री आंधी आई ही ।
बगतर री कड़ियां बड़की ही, जद सिन्धू राग सुणाई ही ।
गड़गड़िया तोपां रा गोळा, भालां री अणियां भळकी ही ।
जोधारां धारां जुड़तां ही, खाळां रातम्बर खळकी ही ।
रड़वड़ता माथा रणखेतां, अड़वड़ता घोड़ा ऊलळता ।


सिर कटियां सूरा समहर में, ढालां तरवारां ले ढळता ।
रणबंका भिड़ आरांण रचै, तिड़ पेखै भांण तमासा है ।
उण बखत हुवै ललकार उठै, वा राजस्थानी भासा है ॥१॥

इणमें सतियां रा शिलालेख, इणमें संतां री बाणी है ।
इणमें पाबू रा परवाड़ा, इणमें रजवट रो पांणी है ।
इणमें जांभै री जुगत जोय, पीपै री दया प्रकासी है ।
दीठौ समदरसी रामदेव, दादू सत नांम उपासी है ।
इणमें तेजै रा वचन तौर, इणमें हमीर रो हठ पेखौ ।
आवड़ करनी मालणदे रा, इणमें परचा परगट देखौ ।
जद तांई संत सूरमा अर, साहितकारां री सासा है ।
करसां रै हिवड़ै री किलोळ, आ राजस्थानी भासा है ॥२॥

करमां री इण बोली में ही, भगवान खीचडौ़ खायौ है ।
मीरां मेड़तणी इण में ही, गिरधर गोपाळ रिझायौ है ।
इणमें ही पिव सूं माण हेत, राणी ऊमांदे रूठी ही ।
पदमणियां इणमें पाठ पढ्यौ, जद जौहर ज्वाळा ऊठी ही ।
इणमें हाडी ललकार करी, जद आंतड़ियां परनाळी ही ।
मुरधर री बागडोर इणमें ही, दुरगादास संभाळी ही ।
इणमें प्रताप रौ प्रण गूंज्यौ, जद भेंट करी भामासा है ।
सतवादी घणा सपूतां री, आ राजस्थानी भासा है ॥३॥

इणमें ही गायौ हालरियौ, इणमें चंडी री चिरजावां ।
इणमें ऊजमणै गीत गाळ, गुण हरजस परभात्यां गावां ।
इणमें ही आडी औखांणा, ओळगां भिणत वातां इणमें ।
जूनौ इतिहास जौवणौ व्है, तौ अणगिणती ख्यातां इणमें ।
इणमें ही ईसरदास अलू, भगती रा दीप संजोया है ।
कवि दुरसै बांकीदास करन, सूरजमल मोती पोया है ।
इणमें ही पीथल रचि वेलि, रचियोड़ा केइक रासा है ।
डिंगळ गीतां री डकरेलण, आ राजस्थानी भासा है ।।४॥

म्हारी संस्कृति 
इणमें ही हेड़ाऊ जलाल, नांगोदर लाखौ गाईजै ।
सौढो खींवरौ उगेरै जद, चंवरी में धण परणाईजै ।
काछी करियौ नै तौडड़ली, राईको रिड़मल रागां में ।
हंजलौ मौरूड़ौ हाड़ौ नै, सूवटियौ हरियै बागां में ।
इणमें ही जसमां औडण नै, मूमल रूप सरावै है ।
कुरजां पणिहारी काछवियौ, बरसाळौ रस बरसावै है ।
गावै इणमें ही गोरबंद, मनहरणा बारैमासा है ।
रागां रीझाळू रंगभीनी, आ राजस्थानी भासा है ॥५॥

इणमें ही सपना आया है, इणमें ही औळूं आई है ।
इणमें ही आयल अरणी नै, झेडर बाळौचण गाई है ।
इणमें ही धूंसौं बाज्यौ है, रण-तोरण वन्दण रीत हुई ।
इणमें ही वाघै-भारमली, ढोलै-मरवण री प्रीत हुई ।
इणमें ही बाजै बायरियौ, इणमें ही काग करूकै है ।
इणमें ही हिचकी आवै है, इणमें ही आंख फ़रूकै है ।
इणमें ही जीवण-मरण जोय, अन्तस रा आसा-वासा है ।
मोत्यां सूं मूंगी घणमीठी, आ राजस्थानी भासा है ॥६

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

सौरो - दोरो

सौरो - दोरो

--------------
फलका खाणां सोरा है पणं आटो ल्याणों दोरो है ।भक्ति करणीं सोरी है पणं नेम निभाणों दोरो है ।

जीमणं जाणों सोरो है पणं घरां जिमाणों दोरो है ।
फूट घालणीं सोरी है पणं मेल कराणों दोरो है ।

धान ल्यावणों सोरो है पणं रांध खावणों दोरो है ।
चोरी करणीं सोरी है पणं जेल जावणों दोरो है ।

झगडो करणों सोरो है पणं मार खावणों दोरो है ।
धंधो करणों सोरो है पणं नफो कमाणों दोरो है ।

झूठ बोलणों सोरो है पणं साच केवणों दोरो है ।
निंदा करणीं सोरी है पणं मान देवणों दोरो है ।

मौज मनाणीं सोरी है पणं कमा खावणों दोरो है ।
डूब ज्यावणों सोरो है पणं पार जावणों दोरो है ।

गुस्सो करणों सोरो है पणं गम खा ज्याणों दोरो है ।
मांग खावणों सोरो है पणं घर घर जाणों दोरो है ।

बातां करणीं सोरी है पणं बात निभाणीं दोरी है ।
सिलकाणीं तो सोरी है पणं लाय बुझाणीं दोरी है ।

बालपणां में पडे आदतां पछे सुधरणीं दोरी है ।
गंजो माथो बुरो नहीं पणं खाज कुचरणीं दोरी है ।

ठोकर खाणीं सोरी है पणं बुद्दि आणीं दोरी है ।
अंगरेजी पढ ज्याणें है पणं हिंदी आणीं दोरी है ।

मीठो खाणों सोरो है पणं जेर पीवणों दोरो है ।
खोटा धंधा सोरा है पणं पछे जीवणों दोरो है ।

गुरु बणाणों सोरो है पणं ग्यान आवणों दोरो है ।
ऊधार लेणों सोरो पणं पाछो देणों दोरो है ।

रविवार, 3 दिसंबर 2017

टेम्पूड़ो

टेम्पूड़ो

कोई लंबा रिश्तेदारां में , म्हाने बुलाणो हुयो ,
तो हम्काले गाड़ी में , सेहर म्हां जाणो हुयो ।।

भीड़ तो घणी ही गाडी में , पण भीड़ में ही है मजो ,
दो री जाग्यां चार बैठो  , नीं मावे तो भी माडे ई पजो ।
जियां ई गाड़ी ऊं उतर् यो , एक टेम्पूड़ा रो आणो हुयो ।।
        एकर टेम्पूड़ा में जाणो हुयो ।।

जोर जोर सूं दे पिंपाड़ा , डलावर हेला मारे ,
जन्ने जाओ वन्ने ले जाऊं , थैं बैठो म्हारे लारे ।
गळी मोहल्लो टेसण स्टेशण ,चाहे कोट कचेरी थाणो हुयो ।।
        एकर टेम्पूड़ा में जाणो हुयो ।।

म्हारे बैठ तांई पांच बैठ्या ,तीन लटक्या लारे ,
चार ऐड़े छेड़े बैठगा ,अर दोय डलावर सारे ।
जियां ई आगे सिरक्यो ,एक सवारी को आणो हुयो ।।
      एकर टेम्पूड़ा में जाणो हुयो ।।

लोभी जीव लारानी देख्यो ,ओ एक तो चालेलो ?
म्हां सगळा एक् साथे बोल्या ,और कठे घलेलो ?
कतोक जाणो ,क्यूं हेला करो ,ऐड़ो मोको कदेक ई पाणो हुयो ?
      एकर टेम्पूड़ा में जाणो हुयो ।।

सोरो दोरो आगे चाल्यो ,घणा कमाया पिया ,
किं उतार् या किं चाढ्या ,किं बैठा ई तो रिया ।।
मोळा मोळा मूंडा फाड़ेवा ,कि चलू एक सांतरो घाणो हुयो ।।
      एकर टेम्पूड़ा में जाणो हूयो ।।

बातां बातां म्हां पूछ लियो ,किंया धंधो पाणी ?
पेली तो किं कमांता , पण अब नी आणी जाणी ।
जग्यां जग्यां दिखे टेम्पूड़ा ,ओ तो ''  निकमां रो ठाणो हुयो ।।
     एकर टेम्पूड़ा में जाणो हुयो ।।


शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

ढूंढता ही रे जाओला

लुगाईयाँ का घाघरा
खिचड़ी का बाजरा
सिरसम का साग
सर पै पाग
आँगण मै ऊखल
कूण मै मूसल
ढूंढते रह जाओगे


घरां मै लस्सी
लत्ते टाँगण की रस्सी
आग चूल्हे की
संटी दुल्हे की
कोरडा होली का
नाल मौली का
पहलवानां का लंगोट
हनुमानजी का रोट
ढूंढते रह जाओगे


घूंघट आली लुगाई
गाँम मै दाई
लालटेण का चानणा
बनछटीयाँ का बालणा
बधाई की भेल्ली
गाम मै हेल्ली
घरां मै बुड्ढे
बैठकाँ मै मुड्ढे
ढूंढते रह जाओगे


बास्सी रोटी अर अचार
गली मै घूमते लुहार
खांड का कसार
टींट का अचार
काँसी की थाली
डांगरां के पाली
बीजणा नौ डांडी का
दूध दही घी हांडी का
रसोई मै दरात
बालकां की दवात
ढूंढते रह जाओगे /


बटेऊआँ की शान
बहुआं की आन
पील गर्मियां मैं
गूँद सर्दियाँ मैं
ताऊ का हुक्का
ब्याह का रुक्का
बोरला नानी का
गंडासा सान्नी का
कातक का नहाण
मूंज के बाण
ढूंढते रह जाओगे /


चूल आली जोड़ी [ किवाड़ ]
गिनती मै कौड़ी
कोथली साम्मण की
रौनक दाम्मण की
पाटड़े पै नहाणा
पत्तल पै खाणा
छात्याँ मै खडंजे अर कड़ी
गुग्गा पीर की छड़ी
ढूँढते रह जाओगे /


लूणी घी की डली
गवार की फली
पाणी भरे देग
बाहण-बेटियां के नेग
ढूंढते रह जाओगे


मोटे सूत की धोत्ती
घी बूरा अर रोटी
पीले चावलाँ का न्यौता
सात पोतियाँ पै पोत्ता
धौण धड़ी के बाट
मूँज - जेवड़ी की खाट
घी का माट
भुन्दे होए टाट
गुल्ली - डंडे का खेल
गुड की सेळ
ब्याह के बनवारे
सुहागी मैं छुहारे
ताँगे की सवारी
दूध की हारी
पेचदार पगड़ी
घोट्टे आली चुन्दडी
सर पै भरोट्टी
कमर पै चोट्टी
ढूढ़ते रह जाओगे /


कासण मांजन का जूणा
साधूआँ का बलदा धुणा
गुग्गे का गुलगला
बालक चुलबला
बोरले आली ताई
सूत की कताई
मुल्तानी अर गेरू
बलध अर रेहडू
कमोई अर करवे
चा - पाणी के बरवे
ब्याह मै खोड़िया
बालकां का पोड़िया
ढूंढते रह जाओगे /

हटड़ी अर आला
बुडकलाँ की माला
दूध पै मलाई
लोगाँ कै समाई
खेताँ मै कोल्हू
नामाँ मै गोल्हू
ढूंढते रह जाओगे


गुड़ की सुहाली
खेताँ मै हाली
हारे की सिलगती आग
ब्याह मै पेठे का साग
हाथ का बँटा बाण
सरगुन्दी आली नाण
हाथ मै झोला
खीर का कचोला
ड्योढ़ी की सोड
बंदडे का मोड़ [सेहरा ]
खेत में बैठ के खाना,
डोल्ला का सिरहाना,
लावणी करती लुगाईया,
पानी प्याती पनहारिया,
डेला नीचे खाट,
भाटा के बाट,
ढूंढते रह जाओगे !


सिर मैं भौरी
अणपढ़ छौरी
चरमक चूँ की जूती
दुध प्यांण की तूती
मावस की खीर
पहंडे का नीर
गर्मियां मैं राबड़ी
खेताँ मैं छाबड़ी
घरां मैं पौली
कोरडे की होली
चणे के साग की कढी
चाबी तैं चालदी घडी
काबुआ कांसी का
काढ़ा खांसी का
काजल कौंचे की
शुद्धताई चौंके की
गुलगला बरसात का
चूरमा सकरात का
सीठणे लुगाइयाँ के
नखरे हलवाईयाँ के
भजनी अर ढोलक
माट्टी के गुल्लक
ढूंढते रह जाओगे !!


-संकलित रचना

रविवार, 23 अप्रैल 2017

कवि #कानदानजी_चारण 'कल्पित' की अमर रचना --

~-

डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण ,
चिड़कली रा नैण,लाडलडी़ रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण,सूवटडी़ रा नैण,
दो’रो घणो सासरियो॥

मायड़ जाण कळेजै री कोर,फ़ूल माथै पांख्यां धरी।
माथै कर-कर पलकां री छांय,पाळ-पोस मोटी करी॥
राखी नैणां री पुतळी जाण,मोतीडा़ सूं महंगी करी।
कर-कर आघ,लडाई घण लाड,
भरीजी मन गाढ,
जीवण मीठो ज़हर पियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

डूबी सोच समंदडै़ रै बीच,तरंगा में उळझ परी।
जाणै मोत्यां बिचली लाल,पल्लै बंधी खुल परी।
भरियो नैणां ममता-नीर,लाडलडी़ नै गोद भरी।
जागी-जागी कळैजै री पीड़,
हिय सूं लीवी भीड़,
गरळ-गळ हिवडो़ भरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

भाभीसा काढ काजळियै री रेख,संवारी हिंगळू मांगड़ली।
बीरोसा लाया सदा सुरंगो बेस,ओढाई बोरंग चूंदड़ली।
बाबोसा फ़ेरियो माथै पर हाथ,दिराई बाई नै सीखड़ली।
ऊभो-ऊभो साथणियां रो साथ,
आंसूडा़ भीज्यो गात,
नैणां झड़ ओसरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

करती कळझळ हिवडै़ रा दो टूक,कूंकूं पगल्या आगै धरिया ।
कायर हिरणी-सी मुड़-मुड़ देख ,आंख्यां माथै हाथ धरिया ।
मुखडो़ मुरझायो बिछडंतां आज ,रो-रो नैण राता करिया ।
चांद-मुखडै़ उदासी री रेख,
डुसक्यां भरती देख,
सहेल्यां गायो मोरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

रथडै़ चढती पाछल फ़ोर,सहेल्यां नै झालो दियो।
कूंकूं-छाई बाजर हरियै खेत,जाणै जियां झोलो बियो|
छळक्या नैण घूंघटियै री ओट,काळजो काढ लियो।
काळी-काळी काजळियै री रेख,
मगसी पड़गी देख,
नैणां सूं ढळक्यो काजळियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

मनण-रूठण रा आणंद उछाव,हियै रै परदै मंडता गिया।
सारा बाळपणै रा चित्राम,नैणां आगै ढळता गिया।
बिलखी मावड़ नै मुड़ती देख, विकल नैण झरता गिया।
करती निस-दिन हंस-किलोळ,
बाबोसा-घर री पोळ,
ढ्ल्या रो रमणो छूट गियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

लागी बालपणै री प्रीत,जातोडी जीवडो़ दो’रो कियो।
रेसम रासां नै दी फ़णकार,सागडी़ नै रथडो़ खड़यो।
धरती अम्बर रेखा रै बीच,सोवन सूरज डूब गियो।
दीख्या-दीख्या सासरियै रा रूंख,
रेतड़ली रा टूंक,
सौ कोसां रहग्यो पीवरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥

डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण,
चिड़कली रा नैण,लाडलडी़ रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण,कोयलडी़ रा नैण,
सूवटडी़ रा नैण,दो’रो घणो सासरियो॥

रविवार, 8 जनवरी 2017

मोबाइल री कथा

*राजस्थानी भाषा में एक व्यंगात्मक*
                   हास्य कविता

कलयुग में भगवान एक, ''खिलौनों बणायो।
दुनियावाला ई को नाम मोबाइल रखवायो।

मोबाइल रखवायो,खिलोणो अजबअनोखो।
धरती क इन्साना न यो,लाग्यो घणो चोखो।।

इन्सानासुं भगवनबोल्या,बात राखज्यो याद।
सोचसमझ वापरो, वरना होज्यासो बर्बाद।।

होज्यासो बर्बाद,चस्को लागेलो अति भारी।
ई के लारे पागल हो जावेली दुनिया सारी।।

सदउपयोग करेजो कोई,काम घणोयो आसी।
दुर्पयोगजे होवण लाग्यो,टाबर बिगड़जासी।।

टाबर बिगड़ जासी,कोई की भी नहीं सुणेला।
'मोबाइल' में मगन रहसी,काम नहीं करेला।।

टाबरांकी छोड़ो,बडोड़ा की अक्कल जासी।
कामधंधा छोड़ बैठ्या मोबाइल मचकासी।

मोबाइलमचकासी और खेलसी दिनभरगेम।
व्हाट्सएप रे मैसेज मे ही,बीत जासी टेम।।

छोरियां और लुगायां लेसी इंटरनेट कनेक्शन।
हाथांमें मोबाइल रखणो बणजावेलो फ़ैसन।।

बण जावेलो फ़ैसन,ए तो फेसबुक चलासी।
रामायण और भगवतगीता पढणो भूलजासी

अपणेअपणे मोबाइल मे,रहसी सगळा मस्त।
धर्मकर्म और रिश्तानाता,सबहो जासी ध्वस्त।

हे ! प्रभु थारी आ लीला है घणी अपरम्पार
थें म्हानेबतावो, यो थांरो किस्यो है अवतार'।।

सोमवार, 2 जनवरी 2017

अै लिछमी दीप बुझाती जा!

अै लिछमी दीप बुझाती जा!


ओढ्यां जा चीर गरीबां रा
धनिकां रौ हियौ रिझाती जा
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै, अै लिछमी दीप बुझाती जा !
हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं तिल तिल करसौ छीज्यौ हौ
ऊंनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ
कुण जांणै कितरा दुख झेल्या, मर खपनै कीनी रखवाळी
कांटां-भुट्टां में दिन काढ्या, फूलां ज्यूं लिछमी नै पाळी
पण बणठण चढगी गढ-कोटां, नखराळी छिण में छोड साथ
जद पूछ्यौ कारण जावण रौ, हंस मारी बैरण अेक लात
अधमरियां प्रांण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !

जे घड़ी विधाता रूपाळी, सिणगार दियौ है मजदूरां
रखड़ी बाजूबंद तीमणियौ, गळहार दियौ है मजदूरां
लोई में बोटी बांट-बांट, जिण मेंहदी हाथ लगाई ही
फूलां ज्यूं कंवळा टाबरिया, चरणां में भेंट चढाई ही
घर री बू-बेट्यां बिलखी, पण लिछमी तनै सजाई ही
इक थारी जोत जगावण नै, घर-घर री जोत बुझाई ही
पण अैन दिवाळी रै दिन बैरण, सांम्ही छाती पग धरती
ठुमकै सूं चढी हवेली में, मन मरजी रा मटका करती
जे लाज बेचणी तेवड़ली, तो पूरौ मोल चुकाती जा
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !

इतरा दिन ठगती रैई है, थूं भोळी बण छळ जाती ही
खाती ही रोटी मांटी री, पण गीत वीरै रा गाती ही
जे हमें जांण रौ नांम लियौ, तौ जीभ डांम दी जावैला
जे निजर उठी मैलां कानीं, तौ आंख फोड़ दी जावैला
जे हाथ उठायौ हाकै नै, नागोरी गहणौ जड़ दांला
जे पग धर दीनां सेठां घर, तौ पगां पांगळी कर दांला
महलां गढ़ कोटां बंगळां रा, वे सपना हमें भुलाती जा
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !